आजकल
के बच्चे
थोड़े नादान थोड़े
अनजान, थोड़े सँभलते थोड़े फिसलते
समय की भट्टी
में जलते, संस्कारों से कुंदन से दमकते||
अच्छी पढाई का
बोझ लिए घर से निकलते
दुनियादारी की
आंधी में खुद से संभलते||
घर का सुख नही
माँ का लाड नही
बचपन की मस्ती
नही, जीवन का आनंद नही||
यूँ ही तो नही
तकदीर अपनी बदलते
समय के साथ समय
से आगे है चलते ||
कुछ पाने के लिए
कितना कुछ खो देते है
माँ की गोद मिले
तो बिना बात रो देते है||
कैसा जमाना आया
है अंधी दौड़ जारी है
हर कोई एक दुसरे
पर बन रहा भारी है||
2 comments:
वहुत खूव ..
सुंदर रचना
शुक्रिया नेह्दूत
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