कैसा ये धर्म है कैसा ये संस्कार
खुद की जनी संतान हो गयी खुद पे भार
नाजो पली बेटी को कर देते है दान
कमाएंगे धर्म और पुण्य महान ||
खुद की जनी संतान हो गयी खुद पे भार
नाजो पली बेटी को कर देते है दान
कमाएंगे धर्म और पुण्य महान ||
बेटी ना कोई वस्तु है ना है कोई खिलौना
दान करके जिसे है पापमुक्त होना
सुन लो दुनियावालो समाज की यही खराबी
दान की वस्तु नही वो तो है खुशियों की चाबी||
कन्यादान के नाम पर अब होगा ना उपहास
बेटी है स्रष्टि की जननी बेटी है वंशो की लाज
दान में मिली वस्तु का कहो क्या होता मान
दान दे दिया है तो फिर क्या रहा अधिकार||
समाज को देनी है चुनौती
बेटी नही दान की वस्तु होती
हर माँ को लेना होगा ये प्रण
विवाह में कन्यादान करेगी अब बंद ||
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