Wednesday, August 6, 2014

नींद का मुझसे नजाने कैसा बैर है

नींद का मुझसे नजाने कैसा बैर है 
सारी रात इंतजार ही बना रहता है ||

कितनी करवटे ना जाने कितनी करवटे
फोड़ा सा पक़ता है बदन में ||

चाँद सितारे सब जागते है मेरे साथ 
हाँ, चाँद कभी बहाना करके नागा कर लेता है||
 
शरीर मुर्दे सा अकड जाता है 
पर दर्द फिर भी पकता है ||

विचारों के सिरे एक बार खुले 
तो फिर उधड़ते चले जाते है||
 
कहाँ तक ना जाने कहाँ तक
दिलो दिमाग की जंग में आँखों को ||

ना जाने किस बात की सजा मिलती है 
सूखी सूखी पथराई सी रहती है||
 
आंसूओं का भी दरिया सुख सा गया है  
भीगा कर खुद को तर भी नही कर पाती ||

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