Tuesday, August 5, 2014

पिया मोरे गये परदेश क्योंकर बांधू में ये केश

पिया मोरे गये परदेश 
क्योंकर बांधू में ये केश 
ढलता जा रहा ये यौवन 
सुलग सुलग जाता है तनमन
कैसे तो दिन है कटते
कैसे कटती है मेरी राते 
छुरियाँ सी चलती है दिल पर 
सुन सखियन की बातें
हार श्रृंगार सब मुहँ चिड़ाते
अगन जिया की और बढ़ाते
याद आते बीते पल तो
खुद को रोक नहीं पाती हु
यादो के दरिया में तुम संग
डूब डूब में जाती हु
सुख खोजन गये परदेश
इतना भी ना जाना
साथ तुम्हारे मेरा सुख है
कहना कभी ना माना
तुम बिन कांटे बने है पलछिन
बन सकते थे जो मोती
साथ ना तुम हो याद तुम्हारी
पलकों पे है सोती
तुम क्या जानो तुमबिन कैसा
जलता है ये जीवन
आग लगी दिल की बस्ती में
कल तक था जो मधुबन
देर ना करना पिया बिना अब
और नही जी पाउंगी
साथ तुम्हारे जी ना सकी तो
मरकर साथ निभाउंगी

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