Wednesday, October 29, 2014

शुभाशीष

पैर रहें धरती पर अड़े
हाथों में सूरज चाँद पड़े
खुशियाँ बरसाए हर इक पल
दामन जितना भी छोटा पड़े

तन कंचन मन साफ रहे
आत्मा तुम्हारी निष्पाप रहे
महसूस करो पीड़ा सबकी
हर पीड़ा का अहसास रहें
           
दुखों की कभी ना नज़र पड़े
सुखों का कभी ना नशा चढ़े    
गलत कभी ना साथ बढे
सत्य सदा हिम्मत से लड़े

असफलता ना शेष रहे
सफलताओं का समावेश रहे 
मान सदा ऊँचा ही रहे
सूरज सा मुख पर तेज रहे

जीवन मेरा तुम पर अर्पण
उम्र भी मेरी तुम्हे लगे
सरस्वती का वास हो जिव्हा पर
आशीष सदा जीवन भर फलें

Thursday, October 9, 2014

खुद ही रूठे और खुद ही मना लेते है

खुद ही रूठे और खुद ही मना लेते है
दिल जब रोता है तो खुद ही हंसा लेते है

सुनी हो जाती है जब कभी आँखें
आंसुओं से सजा लेते है

भर जाता है जब दिल दर्द से
मुस्कराहट होठों पे सजा लेते है

अपने गम का हम खुद ही
जी भरके मज़ा लेते है


नवरात्र पूजन

आओ पूजा करें देवी की रोज नये रूप में
सराबोर कर दें देवी को चन्दन और धुप में|| 

खुश होकर दिया वरदान तो होगा हर एक सपना पूरा
सच जीवन हो जाएगा कुछ ना रहेगा फिर अधुरा ||

बेटी मरने के लिए और बहु है जलने के लिए
फिर भी चाहिए कन्या नवरात्र पूजन के लिए||

जग को तो बहुत लिया ठग
आओ थोडा भगवन को भी ठगे||

रोज सुबह पूजा करें और दिन भर करे क्लेश
भूखे पेट रहे दिनभर तो धैर्य बचा ना शेष||

नही मांगती देवी हमसे श्रध्दा के भी भाव
बिन बोले ही दिख जाते है उसको दिल के घाव||

मन में लगी है कालिख ऐसी छूटती नही छुटाए
यही दे देती पाप का फल तो करते हाय हाय||

बसती है देवी श्रष्टि की, घर की हर एक नारी में
नारी का सम्मान जो हो तो, खुशियाँ घर की फुलवारी में ||

जिन्दगी का नया सफ़र

आज फिर एक नये सफ़र की रवानी है
जिन्दगी बहते दरिया का पानी है ||

ठहरती हुई जिन्दगी ने
एक बार फिर से गति पकड़ी है||

हर नया मोड़ एक नई मंजिल दिखा रहा है
यादों में दफ़न सपने सामने बैठकर मुस्करा रहे है||

डरती हूँ नए सफ़र में जाने को
बांकी है जिन्दगी में अभी बहुत कुछ पाने को ||

एक सफ़र ही तो है जिन्दगी
और सफर में संघर्ष जारी है||

फितरत नही है मेरी यूँ हार कर बैठ जाना
बहुत देर से आई पर अब आई मेरी भी बारी है|| 

घर का दर्द

घर का दर्द

दुखड़े अपने सुना रहा है
मुझसे मेरा घर
क्यों मुझमें यूँ जान बसायी
जाना था जो अगर||

हमसे आकर टकराती थी
खुशियों की अठखेली
तन्हा तन्हा हुआ हर कोना
रोती दीवार अकेली ||

हर कमरा मुरझाया है
हर कोना कोना उदास है
साल ख़तम होने को आया
अब तो उनकी आस है ||

तुम जैसे को झेल रहे थे
हँसते, लड़ते खेल रहे थे
तुमने भी जाने की ठानी
करलो सब अपनी मनमानी||

तुम बिन क्या होगा हाल मेरा
रह जाएगा सब श्रृंगार धरा
ऐसे भी मुँह ना मोड़ो
कुछ तो अपनी यादें छोडो ||

दुखड़े अपने सुना रहा है
मुझसे मेरा घर
क्यों मुझमें यूँ जान बसायी
जाना था जो अगर||






दिल की बात

शाख से टूटे पत्ते सा हो गया हूँ मैं
उड़ा ले जाती है तेरी हवा जिधर चाहे मुझे

खाली बर्तन सा हो गया है ये दिल भी मेरा
भाप बनकर उड़ जाते है अहसास सारे

खुद ही दिल के छाले फोड़ते है और खुद ही सी लेते है
जिन्दा जो रहना है गर तो कुछ तो करना होगा

वाह वाह तो सब करते है गहराई को कौन समझ पाया है
जो डूबा तो वो डूबा ही है बाहर भला कब आया है

जख्मी हो जिगर तो आरजुओं का बसर होता है
जख्म बोलते है कागज पर तो असर होता है