Tuesday, August 5, 2014

उलझी उलझी थी दिल की गली

उलझी उलझी थी दिल की गली
रुकते चलते फिर बात चली||

कदमो कदमो हम साथ चले
थे उनकी गली मंजिल ना मिली ||
 
भौचक से रहे वो देखा किये
हमने जो कही उसने ना सुनी||

उलझी उलझी थी दिल की गली
रुकते चलते फिर बात चली||

दिल की जो लगी लब से निकली  
हल्की हल्की तबियत मचली||

कुछ वो बहके कुछ हम सम्भले
नजरो से चली नजरो को लगी||

उलझी उलझी थी दिल की गली
रुकते चलते फिर बात चली||

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