कलम थोडा सा जो
हम चलाने लगे
दोस्त सभी हमारे
हमें भुलाने लगे||
वो जो सिखाते थे
हमें मायने गज़ल के
उन्ही को मनाने
में हमें ज़माने लगे ||
पदचिन्हों का
पीछा करते रहे हम
पाने में सदियों
और जमाने लगे ||
कलम थोडा सा जो
हम चलाने लगे
दोस्त सभी हमारे
हमें भुलाने लगे||
कलम जो लगी झूम
कर चलने
पूछो न कितने
याराने लगे ||
जा पहुंचे एक
दिन शायरों की बस्ती में
कुछ अपने और
अपने हमें बेगाने लगे||
कलम थोडा सा जो
हम चलाने लगे
दोस्त सभी हमारे
हमें भुलाने लगे||
खुलते चले गये
राह दर शहर
गज़लो के यारो
हाथ खजाने लगे ||
कहीं जगमगाते थे
खुशियों के दिये
तो कही तन्हाई
के वीराने लगे ||
कलम थोडा सा जो
हम चलाने लगे
दोस्त सभी हमारे
हमें भुलाने लगे ||
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