Friday, August 22, 2014

कलम थोडा सा जो हम चलाने लगे दोस्त सभी हमारे हमें भुलाने लगे||

कलम थोडा सा जो हम चलाने लगे
दोस्त सभी हमारे हमें भुलाने लगे||

वो जो सिखाते थे हमें मायने गज़ल के
उन्ही को मनाने में हमें ज़माने लगे ||
पदचिन्हों का पीछा करते रहे हम
पाने में सदियों और जमाने लगे ||

कलम थोडा सा जो हम चलाने लगे
दोस्त सभी हमारे हमें भुलाने लगे||

कलम जो लगी झूम कर चलने
पूछो न कितने याराने लगे ||
जा पहुंचे एक दिन शायरों की बस्ती में
कुछ अपने और अपने हमें बेगाने लगे||

कलम थोडा सा जो हम चलाने लगे
दोस्त सभी हमारे हमें भुलाने लगे||

खुलते चले गये राह दर शहर
गज़लो के यारो हाथ खजाने लगे ||
कहीं जगमगाते थे खुशियों के दिये
तो कही तन्हाई के वीराने लगे ||

कलम थोडा सा जो हम चलाने लगे

दोस्त सभी हमारे हमें भुलाने लगे ||

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