जो कभी कह न सकी एक नारी उसे कहने का प्रयास है दिल को छू जाए तो समझना दर्द साझा है
Tuesday, August 5, 2014
धर्म
धर्म के नाम पर कर रहे
कैसा नंगा नाच ||
क्रोध और अहंकार के
फूट रहे है राग||
कलुषित हो रहे भगवा वस्त्र
कलंकित हो रहा रुद्राक्ष||
बाजार भाव बढाने की
लगी हुई है होड||
पाशविकता जागी है
सारे बंधन तोड़|
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