Saturday, December 27, 2014

फेसबुक की महिमा


सुन्दर सुन्दर नार
करके साज श्रृंगार
फेसबुक पे छा जाते
नित चित्रों के हार
नित चित्रों के हार देख
दमकते सबके मुहार
इसकी भूल भुलैया में
छूटा घर संसार
छुटा घर संसार
लुट गया कारोबार
फेसबुक के क़दमों में
डाल दिए हथियार
लत, कुलत, महालत
सबको दे लतियाए
इसकी लत ऐसे लगे
पानी ना मांगन पाए
एक ज्ञानी एक अज्ञानी
अथाह उर आनंद समाता
दोनों ज्ञानी हो जाते तो
घरद्वार छींके टंग जाता
कब तक यूँ ही दौड़ेंगे
सपनो के रथ पे सवार
हकीकत की एक चोट

देगी सब भूत उतार 

गणेश जी की व्यथा


गणेश जी ने व्यथा सुनाई
माँ पार्वती के आगे
इतनी सर्दी पड़ रही माँ
कैसे कोई  नींद से जागे

भक्तजन जगा देते है
घंटी बजा बजा कर
लड्डुओं का लोभ दिखलाते
थाल सजा सजा कर

ठन्डे ठन्डे पानी से
रोज पुजारी नहलाता
कितनी भी सर्दी लग जाए
छींक कभी ना मैं पाता

कपडे तुमने कम पहनाये
कुछ तो ब्रांडेड दिलवा दो
बुना ना जाता स्वेटर तुमसे
उनी कुछ भी सिलवा दो

बात मेरी बहुत है ख़ास
मुझ पर तुम कर लो विश्वास
बिगड़ रही है सेहत मेरी
हफ्ते में दे दो एक अवकाश

Tuesday, December 2, 2014

तोड़ के बंधन बह गया ये मन

तोड़ के बंधन बह गया ये मन
ज्यों बह जाता बाढ़ का पानी
हाथ पसारे रह गयी अंखियाँ
दिल ने हठ करने की ठानी
 
तुम आये तो हो गये जिन्दा
दिल के सब अहसास कुंवारे
दिल ने किया है धोखा ऐसा
जा बैठा वो पास तुम्हारे

मीठा मीठा स्पंदन देता
तेरी नज़र का हर एक झोंका
बहुत लगाई बाड़े हमने
हर रस्ता आने का रोका

दिल की धड़कन शोर मचाये
अरमानों के फैले साए
दिन में भी है ख्व़ाब तुम्हारे
नींद तुम्हें संग लेकर आये

चीर गया नज़रों का मिलना
रोक सके ना दिल का खिलना
छोड़ दिया है खुद को तुमपर
क्या तो सम्हलना और क्या फिसलना

सरिता पन्थी