गणेश जी ने व्यथा सुनाई
माँ पार्वती के आगे
इतनी सर्दी पड़ रही माँ
कैसे कोई नींद से
जागे
भक्तजन जगा देते है
घंटी बजा बजा कर
लड्डुओं का लोभ दिखलाते
थाल सजा सजा कर
ठन्डे ठन्डे पानी से
रोज पुजारी नहलाता
कितनी भी सर्दी लग जाए
छींक कभी ना मैं पाता
कपडे तुमने कम पहनाये
कुछ तो ब्रांडेड दिलवा दो
बुना ना जाता स्वेटर तुमसे
उनी कुछ भी सिलवा दो
बात मेरी बहुत है ख़ास
मुझ पर तुम कर लो विश्वास
बिगड़ रही है सेहत मेरी
हफ्ते में दे दो एक अवकाश
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