नही मरता प्रेम मेनोपॉज
से
दिल धडकता है सांसे
सुलगती हैं
चेहरे पर अनगिनत रंग..
अब भी बिखर जाते हैं
आईना देखकर मुस्कुराना
अच्छा लगता है
फूल, खुशबु, भौरे, पतंगे,
सब कुछ ही तो अच्छे लगते
हैं..
बारिश की बूंदें तन को अब
भी तरंगित करती हैं
हवाएं मन को गुदगुदा जाती
हैं
मेनोपॉज के इतने सालों
बाद भी,
तो कुछ भी तो नहीं बदला .
अगर कुछ बदला है तो वो है,
सोचने का नजरिया...
खुद को और ज्यादा खुबसूरत
महसूस करती हूँ इन दिनों
..
आत्मविश्वास पहले से
ज्यादा बढ़ गया है
धैर्य,धीरज और स्थिरता
जैसे गहने
चार चाँद लगा रहे हैं
मेरे व्यक्तित्व में ..
कौन कहता है मेनोपॉज
वृद्धावस्था की देहरी है ?
मैं तैयार हूँ जिंदगी की
दूसरी पारी के लिए
ये अहसास हैं मेरे जिंदा
होने के
ये किसी मेनोपॉज नाम के
कीटाणु से मर नही सकते ...
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