Wednesday, August 6, 2014

मन की थाह

दरिया है समंदर है
न जाने क्या क्या इसके अन्दर है ||

गहरा गहरा धुँवा है
अँधेरा सा कुँवा है ||

सूरज का ताप है
मद्धम मद्धम आग है ||

लहरों का ज्वार भाटा है
मीलों तक सन्नाटा है||

दरिया है समंदर है
न जाने क्या क्या इसके अन्दर है||

टूटे हुए खवाब है
अनसुलझे राज है||

जख्मो के दाग है
कई बिगड़े साज है||

कहीं कोने में दबा पड़ा
प्यार का मीठा राग है ||

दरिया है समंदर है
न जाने क्या क्या इसके अन्दर है ||



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