Thursday, September 11, 2014

पितृ पक्ष को समर्पित

फिर से आई है बारी
धरती पर वापस जाने की||

पुत्र कर रहे है तैयारी
पितरों संग त्यौहार मनाने की||

अफरा तफरी मची हुई है
जाना भी तो जरुरी है||

पितृ पक्ष में मिलन है होता
फिर तो लम्बी दुरी है ||

कुछ आ जाते ख़ुशी ख़ुशी
कुछ अनमने से आये है||

सुख ही सुख तो ना था जीवन
दुखों के घाव भी खाए है ||

जीते जी तो कुछ ना पाया
मर गये तब याद है आया||

खीर पूरी का भोग लगाया
नाम हमारे ब्राह्मण ने खाया||

जीते जी आशीष दिया है
मर कर भी आशीष है देते

हमने तो झुलसाया जीवन
तुम्हे कभी ना आंच लगे ||





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