Thursday, September 18, 2014

ये मन भागता सा

ये मन भागता सा

ये मन भागता सा
हाथो से फिसलता
दूर जा खड़ा होता है|| 

कुछ कहता है कुछ सुनता है
अपने ही सपने बुनता है ||
रोक ना सकती सीमा कोई
हवाओं के संग बहता है ||
भटका देता है राह मेरी
भ्रमित दिशाएँ कर देता है ||
सूनी सूनी दिल की राहों में
आशाओं के दीप सजाता है ||
देख उजाला दबे पाँव
ना जाने कौन चला आता है ||

ये मन भागता सा
हाथों से फिसलता
दूर जा खड़ा होता है||

मुश्किल मेरी देता है बढ़ा
सपनो के बेल को देता चढ़ा ||
बिन डोर पतंगे उडती है
सपनो के आसमां को छूती है ||
सोये हुए तालाब में जैसे
झंकार करे कंकर जो पड़े||
ये मन बावरा सा
अनजानी दुनिया में ले जाता है ||
अनजाने से सपनो में
जीने की खुशियाँ पाता है||

ये मन भागता सा
हाथों से फिसलता
दूर जा खड़ा होता है ||

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