नींद का मुझसे नजाने कैसा बैर है
सारी रात इंतजार ही बना रहता है ||
सारी रात इंतजार ही बना रहता है ||
कितनी करवटे ना जाने कितनी करवटे
फोड़ा सा पक़ता है बदन में ||
चाँद सितारे सब जागते है मेरे साथ
हाँ, चाँद कभी बहाना करके नागा कर लेता है||
शरीर मुर्दे सा अकड जाता है
पर दर्द फिर भी पकता है ||
विचारों के सिरे एक बार खुले
तो फिर उधड़ते चले जाते है||
कहाँ तक ना जाने कहाँ तक
दिलो दिमाग की जंग में आँखों को ||
ना जाने किस बात की सजा मिलती है
सूखी सूखी पथराई सी रहती है||
आंसूओं का भी दरिया सुख सा गया है
भीगा कर खुद को तर भी नही कर पाती ||
No comments:
Post a Comment