अनकहे अल्फाज़
जो कभी कह न सकी एक नारी उसे कहने का प्रयास है दिल को छू जाए तो समझना दर्द साझा है
Thursday, October 9, 2014
खुद ही रूठे और खुद ही मना लेते है
खुद ही रूठे और खुद ही मना लेते है
दिल जब रोता है तो खुद ही हंसा लेते है
सुनी हो जाती है जब कभी आँखें
आंसुओं से सजा लेते है
भर जाता है जब दिल दर्द से
मुस्कराहट होठों पे सजा लेते है
अपने गम का हम खुद ही
जी भरके मज़ा लेते है
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