Thursday, August 28, 2014

आजकल के बच्चे

आजकल के बच्चे

थोड़े नादान थोड़े अनजान, थोड़े सँभलते थोड़े फिसलते
समय की भट्टी में जलते, संस्कारों से कुंदन से दमकते||

अच्छी पढाई का बोझ लिए घर से निकलते
दुनियादारी की आंधी में खुद से संभलते||

घर का सुख नही माँ का लाड नही
बचपन की मस्ती नही, जीवन का आनंद नही||

यूँ ही तो नही तकदीर अपनी बदलते
समय के साथ समय से आगे है चलते ||

कुछ पाने के लिए कितना कुछ खो देते है
माँ की गोद मिले तो बिना बात रो देते है||

कैसा जमाना आया है अंधी दौड़ जारी है
हर कोई एक दुसरे पर बन रहा भारी है||





Friday, August 22, 2014

जब भी हमने काला चश्मा लगाया

जब भी हमने काला चश्मा लगाया
सीने को ४ इंच चौड़ा ही पाया ||

ना जाने क्या कनेक्शन था दोनों में
चश्मा लगाते ही सीना फूल जाता था||

सीना फूलते ही शरीर हरकत में आ जाता
५ फिट के हम खुद को ६ फिट के समझने लगते ||

क्रांति ही आ जाती शरीर में
एक तो वैसे ही हमारी मोटी नाक ||

फूलकर और मोटी हो जाती
तो हमें हो जाती और परेशानी ||

पर काला चश्मा लगाना भी जरुरी था
बिन काले चश्मे के पर्सनेलिटी अधूरी ही लगती हमें ||

फिर वो हमारे हेयर बैंड का भी काम कर देता है
तो हम और भी निखर निखर जाते है ||

दिन हो या रात, धुप हो या बरसात अब अधूरे तो नही रह सकते ना
अब काला चश्मा लगाते  है तो कुछ गलत करते है क्या ?



कलम थोडा सा जो हम चलाने लगे दोस्त सभी हमारे हमें भुलाने लगे||

कलम थोडा सा जो हम चलाने लगे
दोस्त सभी हमारे हमें भुलाने लगे||

वो जो सिखाते थे हमें मायने गज़ल के
उन्ही को मनाने में हमें ज़माने लगे ||
पदचिन्हों का पीछा करते रहे हम
पाने में सदियों और जमाने लगे ||

कलम थोडा सा जो हम चलाने लगे
दोस्त सभी हमारे हमें भुलाने लगे||

कलम जो लगी झूम कर चलने
पूछो न कितने याराने लगे ||
जा पहुंचे एक दिन शायरों की बस्ती में
कुछ अपने और अपने हमें बेगाने लगे||

कलम थोडा सा जो हम चलाने लगे
दोस्त सभी हमारे हमें भुलाने लगे||

खुलते चले गये राह दर शहर
गज़लो के यारो हाथ खजाने लगे ||
कहीं जगमगाते थे खुशियों के दिये
तो कही तन्हाई के वीराने लगे ||

कलम थोडा सा जो हम चलाने लगे

दोस्त सभी हमारे हमें भुलाने लगे ||

Wednesday, August 20, 2014

चिरैया एक सोयी थी, मीठी मीठी नींद में,


चिरैया एक सोयी थी,
मीठी मीठी नींद में,
देख रही थी सपने,
देश एक अनजाने के ||
मुड़ी तुड़ी सी थी चिरैया,
घेरा था घना सुरक्षा का,
आँखें अभी खुली भी ना थी,
बस महसूस होता था उसे,
माँ की ममता की गर्माहट ||
जिस से जीवन बना था उसका,
भूल में थी भोली चिरैया,
जीवन ना था सुरक्षित उसका,
जा पंहुचा दानव फिर एक||
इरादे नही थे जिसके नेक़,
सहम गयी नन्ही चिरैया,
ये सब तो ना होना था,
खेलना था बाबा के संग,
माँ की गोदी सोना था ||
दानव ने कर डाले कितने ही टुकड़े,
उस आत्मा और शरीर के,
खून कर दिया उस जीवन का,
जिसने जीवन देखा ही ना था ||
मर गया एक बीज,
वृक्ष बनने से पहले,
सो गयी मौत की नींद चिरैया ,

आँखे खोलने से पहले ||

Tuesday, August 19, 2014

यादों का सिलसिला चलता ही रहा

यादों का सिलसिला चलता ही रहा
जलना था दिल मेरा जलता ही रहा ||

ले आया सूरज रोशनी का कारवां
मेरे दिल का अँधेरा पलता ही रहा||

ना हो सकेगा रोशन ये दिल मेरा
जब तक ना होगा दीदार तेरा ||

धडकता है दिल तेरी धड़कन के लिए

क्यों बंद कर दिया दिल ने तेरे धडकना ?

Monday, August 18, 2014

फेसबुक पर देवताओं की चहल पहल


देवलोक में मची हुई है बड़ी अजब सी हलचल
बढ़ गयी है फेसबुक पे देवताओं की चहल पहल||

बदले बदले रूप है देवों के बदली बदली है तस्वीर
बॉडी बिल्डर से लग रहे अंजनी पुत्र महावीर ||

देवियों के रूप का भी हो गया है कायाकल्प
आधुनिक है श्रंगार सबके आभूषण हो गये अल्प ||

राधा कृष्ण जी की तो मची हुई है धूम
नित नई है रास लीला चाहे जिधर जाओ घूम||

साईं की तो क्या कहें साईं खुद डर जाते है
बरस रहे है हीरे मोती जो कुछ भी ना खाते है||

बरसो बरस से भगवन का देखा था जो रूप
फेसबुक की अति ने कर डाला उन्हें कुरूप ||

फेसबुक है माध्यम मनोरंजन और ज्ञान का
क्यों इतना करते उपहास श्रद्धा और भगवान् का |

दिल में सजते है भगवान मंदिरों में है सुहाते
नित नही कलाकारी से क्यों आप बाजार सजाते||

मनुष्य रूप दिया भगवन ने पशुओ जैसे काम क्यों
आस्था और श्रद्धा को नित कर रहे बदनाम क्यों ?

Friday, August 15, 2014

स्वतंत्रता दिवस का त्यौहार

ख़तम हो गया आज
स्वतंत्रता दिवस का त्यौहार |
नही दिखेंगे कल से
नारे, झंडे, बैनर हजार ||
पहले हाथो से उतरेगा फिर सोच से
फिर दिल से भी उतर ही जाएगा |
सर से गायब गधे के सिंग
कौन, कहाँ, कब ढूंढ पायेगा ||
ना होगा कोई हर्ष, उल्लास और महोत्सव
हर त्यौहार की तरह एक त्यौहार |
ये भी आया और चला गया
सब खुश है अपने अपने घरो में||
पर कोई ऐसा भी है जिसके लिए
हर एक दिन स्वतंत्रता दिवस है|
उसका ये त्यौहार रोज आता है
पर ख़त्म कभी नही होता ||
उसके लिए कोई छुट्टी नही
कोई मोहलत नही, कोई विश्राम नही|
आंधी में, पानी में, तूफान में, बर्फ में,
डटा रहता है वो इस नश्वर शरीर के सहारे ||
उसका कोई घर नही, कोई परिवार नही
सपने नही, अपने नही |
वो एकमात्र रक्षक है भारतमाता का
जो क़भी नही रुकता, कभी नही हारता ||
चाहे उसके सामने दुश्मन हो
या दैवीय प्रकोप हो |
कोई मांग नही, कोई आन्दोलन भी नही
कोई अनशन नही, कोई फ़रियाद भी नही ||
न्योछावर कर देता है अपनी अंतिम साँसे तक
भारतमाता के चरणों में |
और तभी होता है सही मायनों में स्वतंत्रता दिवस||
भारतमाता के ऐसे वीर सपूतो को कोटिश कोटिश नमन:






Wednesday, August 13, 2014

मेघा पानी बरसाए

मेघा पानी बरसाए 
मोरा जिया हर्षाये |
पड़े पानी की फुहारे 
जिया तुझको पुकारे||
भीगे धरती गगन 
नाचे मयूर मगन| 
धानी ओढ़ के चुनर
धरती गयी है निखर ||
टिप टिप पड़े पानी 
पीर पानी ने ना जानी |
भीगा भीगा मोरा तन
रहा सूखा सूखा मन ||
पिया समझे नही बात
काली लम्बी नागिन रात|
दिन तो जाता है गुजर
रास्ता देखू सारी रात||
होगा कौन सा वो पल
चाँद आएगा निकल |
सीने से फिसला दिल
पत्थर जाएगा पिघल ||
मेघा पानी बरसाए
मोरा जिया हर्षाये ||

Monday, August 11, 2014

क्या सच में स्वतंत्र है हम ??

क्या सच में स्वतंत्र है हम ??

भ्रूण स्वतंत्र नही अग्नि परीक्षा से
बेटा वंश बढाए उस इच्छा से
बेटी  स्वतंत्र नही दहेज़ से
उसकी पढाई लिखाई के परहेज से ||

देश स्वतंत्र नही भ्रस्टाचार से
नेताओ और मंत्रियो के अत्याचार से
सोच स्वतंत्र नही कुरीतियों से
अन्धविश्वास और रुढियो की जकड से ||

समाज स्वतंत्र नही सोच से
दुसरो का भला करने के बोझ से 
बुजुर्ग स्वतंत्र नही व्रद्धाश्रम से
कब पहुंचा दिए जाए इस गम से ||

व्यापारी स्वतंत्र नही कालाबाजारी से
पैसा कमाने की महामारी से
शिक्षा स्वतंत्र नही डोनेशन से
बिना पैसे ना होते एडमिशन से||

भगवान स्वतंत्र नही गुरुओ से
गुरु स्वतंत्र नही भोग से
जिन्दगी स्वतंत्र नही मौत से
कब आ जाए इस खौंफ से ||

क्या सच में स्वतंत्र है हम  ??


सरिता पन्थी

Saturday, August 9, 2014

मोहब्बत में उठ जाते है खुद के जनाज़े

मोहब्बत में उठ जाते है खुद के जनाज़े
जो उठा सको कांधो पे तो मोहब्बत कर लो||

Friday, August 8, 2014

तेरे बिना हर एक रात हम पे भारी है

तेरे बिना हर एक रात हम पे भारी है 
करवटे बदल बदल कर हमने रात गुजारी है 
ख्वाबो ने तो रुखसती ले ही ली थी 
अब नींद तुम्हारी बारी है 
इक तुम्हारे इंतज़ार में पलकों पे सितम जारी है 
आज तो कट गयी सरिता अब कल की तैयारी है ||

चार लाइनें




दिल जब धडकता है बहुत कुछ तुमसे कहता है
जुबान खामोश रहती है नज़रों में बात होती है||
कुछ अरमां सुलगते है कुछ बरसात होती है
दिल ही दिल में यूँ उनसे मुलाकात होती है||





रोज एक नया रूप है जिन्दगी
कभी छाँव तो कभी धुप है जिन्दगी||
मीठी इतनी लगे शहद से कभी
कडवी लगी तो जहर का घूंट है जिन्दगी||





प्यार तो रूह से महसूस हो जाता है
तुम दर्द भी  ना पहचान सके ||
हमने तो लिख दी वफाये तुम्हारे नाम
तुम मतलब भी ना जान सके|| 

चार लाइनें

ना हमें भूलना आसान है ना तुम्हे भुलाना
जब भी याद आये हमारी ख़्वाबो में बुलाना ||
नींद तुम्हारी होगी ख्व़ाब हमारे होंगे
फलक़ तलक रोशन अपने सितारे होंगे ||





बहुत कुछ पाने का नाम है जिन्दगी या
अपनों को खोने का नाम है जिन्दगी||
प्यार भरी याद़ो के साए में
गमो की धुप छाँव है जिन्दगी ||





तुम्हारी याद में कुछ चीज़े आज भी
सम्हाल कर रखी हुई है||
कुछ टूटे हुए ख्व़ाब
कुछ रूठी हुई यादें||
चंद आंसू के कतरे
दम तोडती साँसे
और के टुटा हुआ दिल ||


Thursday, August 7, 2014

डोरी होती थी कच्चे धागे की



डोरी होती थी कच्चे धागे की
राखी हम उसे कहते थे
बहुत सारे भाई बहन जब
छोटे से घरो में रहते थे||

घरो में जगह कम ही होती थी
दिलो में रहना पड़ता था
कितना प्यार करते है हम
ये कभी ना कहना पडता था ||

नदिया सी निश्छल भावनाएं
स्वार्थ के सागर में मिल गयी
अपनेपन की सारी मिठास
खारे पानी में घुल गयी||

राखी की तो क्या कहें ?
वेरायटी की भरमार है
बरसो गुजर जाते है यूँ ही
कलाई का इन्तजार है||

बड़े हम जबसे हो गये है
बड़ा ना हमको होना था
क्या था पता बड़ा होना
बस अपनेपन को खोना था||

जब भी आती है ये राखी
दिलो का दर्द बढ़ा जाती
हर साल आती है राखी
आकर फिर है चली जाती||










दो लाइनें दिल से

लफ्जो में बयाँ हो ना सका कागज़ में उतारा ना गया
वो एक नज़र देख ना सके हमसे भी पुकारा ना गया ||



वक़्त बदला हालात बदले जैसे दिन और रात बदले
इन आँखों ने देखा कैसे अपनों के जज्बात बदले||



वक़्त रुखसती का ऐसा भी आना था
सिवाय उसके पीछे सारा ज़माना था ||



गीत तो बहुत लिखे मोहब्बत के मगर कभी गा ना सके
सितारे थे आसमां के ताउम्र तकते रहे मगर कभी पा ना सके ||



कुछ कर गुजरने की चाह में कहाँ कहाँ से गुजरे
अकेले ही नजर आये हम जहां जहां से गुजरे||



खेल रहे थे मस्त में टकराए वो जो जोरों से
डांट पड़ी है बिजली की रोये है बादल जी भरके||



टूट जाते है मेरे सपने रात ख़तम होते होते
वो बन जाते है बेगाने बात ख़तम होते होते ||



जी लेते है तेरी एक मुस्कान से
यूँ हमारी उम्र कम ना किया करो ||