अनकहे अल्फाज़
जो कभी कह न सकी एक नारी उसे कहने का प्रयास है दिल को छू जाए तो समझना दर्द साझा है
Thursday, August 7, 2014
बदरी बादल से जब भी झरी
बदरी बादल से जब भी झरी
पत्तो ने कहा यूँ बूंदों से ||
तुमने जो छुआ मुझे कुछ तो हुआ
निखर गयी काया ही मेरी ||
अंग अंग मेरा थिरक रहा
प्रेमपाश में घिरी में घिरी||
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