मुजरिम से बन गये है सच्चाई के सर होने तक
सफ़र है तनहा इक सच के असर होने तक ||
ख्याल है मुख्तलिफ से अपनी नजर होने तक
जुबां ना खोलेंगे वो अपना सर होने तक ||
मै, अब पलता गया है क़ुबूल होने तक
बात न बन सकेगी गुरुर होने तक ||
मुश्किल है सफ़र सच्चाई के सर होने तक
सफ़र है तनहा इक सच के असर होने तक||
No comments:
Post a Comment