Tuesday, August 5, 2014

खिली खिली सी सुबह है बिखरा बिखरा नूर है

खिली खिली सी सुबह है 
बिखरा बिखरा नूर है 
महक रहा है तन और मन 
मौसम का ये सुरूर है||

कुछ पाने की चाहत में 
कुछ खोने को मजबूर है 
याद आ रहे अपने सारे 
जो मुझसे बहुत ही दूर है,||

बारिश की बूंदों ने 
छींटे देकर मुझे जगाया है 
टिप टिप करती बूंदों ने
इक प्यार का राग सुनाया है,||


मिटटी की सोंधी खुश्बू से
महक गया है घर आँगन
चहक रहे है परिंदे सारे
हरे हरे है वन उपवन||

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