खिली खिली सी सुबह है
बिखरा बिखरा नूर है
महक रहा है तन और मन
मौसम का ये सुरूर है||
कुछ पाने की चाहत में
कुछ खोने को मजबूर है
याद आ रहे अपने सारे
जो मुझसे बहुत ही दूर है,||
बारिश की बूंदों ने
छींटे देकर मुझे जगाया है
टिप टिप करती बूंदों ने
इक प्यार का राग सुनाया है,||
मिटटी की सोंधी खुश्बू से
महक गया है घर आँगन
चहक रहे है परिंदे सारे
हरे हरे है वन उपवन||
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