Monday, August 4, 2014

काँवरिया

चला काँवरिया जल लेकर 
भोले बाबा की प्यास बुझाने 
काहे दुःख इतने दिए भगवन
चला है बीती आप सुनाने
हाड़ तोड़ कमाया फिर भी
प्रभु जी आधा पेट ही पाया
तुमसे भी कुछ न बने भगवन
तेरी प्यास बुझाने आया
शक्तिहीन दो कंधो पर
तूने धर्म का डाला बोझ
लेते नित नयी परीक्षा
झुक जाते काँधे रोज
मीलो पैदल हम चले
प्यास तुम्हारी बुझाने
द्वार कभी तुम भी आ जाओ
प्रभु किसी ना किसी बहाने
सेवा सदियों से हम करते
तुम सदा तिजोरी भरते
कोई तो ऐसा भी दिन होता
जब तुम मेरी झोली भरते

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