Thursday, September 18, 2014

मेरा भारत महान

मेरा भारत महान

दे रहे है मंत्री देश को
अपना अपना उत्तराधिकारी||
राजनीति है ये या
विरासत की खेती बाड़ी?

देशभक्त मंत्री रहते
हमेशा मस्ती और मौज में 
किस नेता का बेटा कहो ?
गया आजतक फौज में 

एक विरासत को बामुश्किल
फेंका है हमने उखाड  के
बांकी आ गये है देखो
कैसे झंडा गाड के||

जान गवाई सीमा पर
दिया जीवन बलिदान
परिवार भूखों मर रहा उसका
मेरा भारत महान||


ये मन भागता सा

ये मन भागता सा

ये मन भागता सा
हाथो से फिसलता
दूर जा खड़ा होता है|| 

कुछ कहता है कुछ सुनता है
अपने ही सपने बुनता है ||
रोक ना सकती सीमा कोई
हवाओं के संग बहता है ||
भटका देता है राह मेरी
भ्रमित दिशाएँ कर देता है ||
सूनी सूनी दिल की राहों में
आशाओं के दीप सजाता है ||
देख उजाला दबे पाँव
ना जाने कौन चला आता है ||

ये मन भागता सा
हाथों से फिसलता
दूर जा खड़ा होता है||

मुश्किल मेरी देता है बढ़ा
सपनो के बेल को देता चढ़ा ||
बिन डोर पतंगे उडती है
सपनो के आसमां को छूती है ||
सोये हुए तालाब में जैसे
झंकार करे कंकर जो पड़े||
ये मन बावरा सा
अनजानी दुनिया में ले जाता है ||
अनजाने से सपनो में
जीने की खुशियाँ पाता है||

ये मन भागता सा
हाथों से फिसलता
दूर जा खड़ा होता है ||

रसोईघर का झगडा

रसोईघर का झगडा

सोते सोते रात में
आवाजे दी कुछ सुनाई||
कान लगाकर सुना तो
अजब ही दिया दिखाई||

रसोई घर में चल था था
बड़ा ही भारी मसअला||
कौन सही कौन गलत
नही हो रहा था फैसला||

बर्तनों में छिड़ी हुई थी
आपस में इक जंग||
नये नवेले बर्तन आगे
पुराने पीछे तंग||

मिक्सी ने शान से था
अपना आसन जमाया ||
सिलबट्टा था रो रहा
बाहर का रस्ता जो पाया ||

पीतल, कांसे के बर्तन का
पितरों जैसा हाल||
पूजा के दिन दिख जाते
फिर दिखे ना पुरे साल||

दुःखभरे दिन साथ निभाया
LPG का चूल्हा||
स्टायल से आया कुकिंग रेंज
घर चूल्हा को भुला||

छोटा सा था फ्रिज हमारा
सब मिल जुलकर रहते थे||
जबसे आया डबल डोर
अलग हो गये सब साथ छोड़||

दिल घबराया देख देख कर
रसोईघर का झगडा||
भाग उठी में उलटे पाँव
बिस्तर का रस्ता पकड़ा||



Wednesday, September 17, 2014

हाँ में किन्नर हूँ ||

हाँ में किन्नर हूँ ||

हँसते हो तुम सब मुझको देख
नाम रखते हो मेरे अनेक||
सुन्दर सुन्दर उसकी रचना
मेरी ना किसी ने की कल्पना||

ईश्वर ने किया एक नया प्रयोग
स्त्री पुरुष का किया दुरूपयोग||
जाने क्या उसके जी में आया
मुझ जैसा एक पात्र बनाया||

तुम क्या जानो मेरी व्यथा
कैसे में ये जीवन जीता||
घूंट जहर का हर पल पीता
क्या जानो मुझपे क्या बीता ||

नारी मन श्रृंगार जो करता
पुरुष रूप उपहास बनाता
तन दे दिया पुरुष का
और मन रख डाला नारी का||

गलती उसने कर डाली
तो में क्यों होता शर्मिंदा
भोग रहा हूँ में ये जीवन
रह सकता हूँ में जिन्दा||

तुमको तो दीखता है तन
मुझको तो जीना है मन||
हँस देते सब देख मुझे
हाय मेरी ना कभी लगे तुझे||




Thursday, September 11, 2014

पितृ पक्ष को समर्पित

फिर से आई है बारी
धरती पर वापस जाने की||

पुत्र कर रहे है तैयारी
पितरों संग त्यौहार मनाने की||

अफरा तफरी मची हुई है
जाना भी तो जरुरी है||

पितृ पक्ष में मिलन है होता
फिर तो लम्बी दुरी है ||

कुछ आ जाते ख़ुशी ख़ुशी
कुछ अनमने से आये है||

सुख ही सुख तो ना था जीवन
दुखों के घाव भी खाए है ||

जीते जी तो कुछ ना पाया
मर गये तब याद है आया||

खीर पूरी का भोग लगाया
नाम हमारे ब्राह्मण ने खाया||

जीते जी आशीष दिया है
मर कर भी आशीष है देते

हमने तो झुलसाया जीवन
तुम्हे कभी ना आंच लगे ||