Thursday, September 18, 2014

रसोईघर का झगडा

रसोईघर का झगडा

सोते सोते रात में
आवाजे दी कुछ सुनाई||
कान लगाकर सुना तो
अजब ही दिया दिखाई||

रसोई घर में चल था था
बड़ा ही भारी मसअला||
कौन सही कौन गलत
नही हो रहा था फैसला||

बर्तनों में छिड़ी हुई थी
आपस में इक जंग||
नये नवेले बर्तन आगे
पुराने पीछे तंग||

मिक्सी ने शान से था
अपना आसन जमाया ||
सिलबट्टा था रो रहा
बाहर का रस्ता जो पाया ||

पीतल, कांसे के बर्तन का
पितरों जैसा हाल||
पूजा के दिन दिख जाते
फिर दिखे ना पुरे साल||

दुःखभरे दिन साथ निभाया
LPG का चूल्हा||
स्टायल से आया कुकिंग रेंज
घर चूल्हा को भुला||

छोटा सा था फ्रिज हमारा
सब मिल जुलकर रहते थे||
जबसे आया डबल डोर
अलग हो गये सब साथ छोड़||

दिल घबराया देख देख कर
रसोईघर का झगडा||
भाग उठी में उलटे पाँव
बिस्तर का रस्ता पकड़ा||



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