Thursday, October 9, 2014

घर का दर्द

घर का दर्द

दुखड़े अपने सुना रहा है
मुझसे मेरा घर
क्यों मुझमें यूँ जान बसायी
जाना था जो अगर||

हमसे आकर टकराती थी
खुशियों की अठखेली
तन्हा तन्हा हुआ हर कोना
रोती दीवार अकेली ||

हर कमरा मुरझाया है
हर कोना कोना उदास है
साल ख़तम होने को आया
अब तो उनकी आस है ||

तुम जैसे को झेल रहे थे
हँसते, लड़ते खेल रहे थे
तुमने भी जाने की ठानी
करलो सब अपनी मनमानी||

तुम बिन क्या होगा हाल मेरा
रह जाएगा सब श्रृंगार धरा
ऐसे भी मुँह ना मोड़ो
कुछ तो अपनी यादें छोडो ||

दुखड़े अपने सुना रहा है
मुझसे मेरा घर
क्यों मुझमें यूँ जान बसायी
जाना था जो अगर||






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