Thursday, October 9, 2014

जिन्दगी का नया सफ़र

आज फिर एक नये सफ़र की रवानी है
जिन्दगी बहते दरिया का पानी है ||

ठहरती हुई जिन्दगी ने
एक बार फिर से गति पकड़ी है||

हर नया मोड़ एक नई मंजिल दिखा रहा है
यादों में दफ़न सपने सामने बैठकर मुस्करा रहे है||

डरती हूँ नए सफ़र में जाने को
बांकी है जिन्दगी में अभी बहुत कुछ पाने को ||

एक सफ़र ही तो है जिन्दगी
और सफर में संघर्ष जारी है||

फितरत नही है मेरी यूँ हार कर बैठ जाना
बहुत देर से आई पर अब आई मेरी भी बारी है|| 

घर का दर्द

घर का दर्द

दुखड़े अपने सुना रहा है
मुझसे मेरा घर
क्यों मुझमें यूँ जान बसायी
जाना था जो अगर||

हमसे आकर टकराती थी
खुशियों की अठखेली
तन्हा तन्हा हुआ हर कोना
रोती दीवार अकेली ||

हर कमरा मुरझाया है
हर कोना कोना उदास है
साल ख़तम होने को आया
अब तो उनकी आस है ||

तुम जैसे को झेल रहे थे
हँसते, लड़ते खेल रहे थे
तुमने भी जाने की ठानी
करलो सब अपनी मनमानी||

तुम बिन क्या होगा हाल मेरा
रह जाएगा सब श्रृंगार धरा
ऐसे भी मुँह ना मोड़ो
कुछ तो अपनी यादें छोडो ||

दुखड़े अपने सुना रहा है
मुझसे मेरा घर
क्यों मुझमें यूँ जान बसायी
जाना था जो अगर||






दिल की बात

शाख से टूटे पत्ते सा हो गया हूँ मैं
उड़ा ले जाती है तेरी हवा जिधर चाहे मुझे

खाली बर्तन सा हो गया है ये दिल भी मेरा
भाप बनकर उड़ जाते है अहसास सारे

खुद ही दिल के छाले फोड़ते है और खुद ही सी लेते है
जिन्दा जो रहना है गर तो कुछ तो करना होगा

वाह वाह तो सब करते है गहराई को कौन समझ पाया है
जो डूबा तो वो डूबा ही है बाहर भला कब आया है

जख्मी हो जिगर तो आरजुओं का बसर होता है
जख्म बोलते है कागज पर तो असर होता है 

Thursday, September 18, 2014

मेरा भारत महान

मेरा भारत महान

दे रहे है मंत्री देश को
अपना अपना उत्तराधिकारी||
राजनीति है ये या
विरासत की खेती बाड़ी?

देशभक्त मंत्री रहते
हमेशा मस्ती और मौज में 
किस नेता का बेटा कहो ?
गया आजतक फौज में 

एक विरासत को बामुश्किल
फेंका है हमने उखाड  के
बांकी आ गये है देखो
कैसे झंडा गाड के||

जान गवाई सीमा पर
दिया जीवन बलिदान
परिवार भूखों मर रहा उसका
मेरा भारत महान||


ये मन भागता सा

ये मन भागता सा

ये मन भागता सा
हाथो से फिसलता
दूर जा खड़ा होता है|| 

कुछ कहता है कुछ सुनता है
अपने ही सपने बुनता है ||
रोक ना सकती सीमा कोई
हवाओं के संग बहता है ||
भटका देता है राह मेरी
भ्रमित दिशाएँ कर देता है ||
सूनी सूनी दिल की राहों में
आशाओं के दीप सजाता है ||
देख उजाला दबे पाँव
ना जाने कौन चला आता है ||

ये मन भागता सा
हाथों से फिसलता
दूर जा खड़ा होता है||

मुश्किल मेरी देता है बढ़ा
सपनो के बेल को देता चढ़ा ||
बिन डोर पतंगे उडती है
सपनो के आसमां को छूती है ||
सोये हुए तालाब में जैसे
झंकार करे कंकर जो पड़े||
ये मन बावरा सा
अनजानी दुनिया में ले जाता है ||
अनजाने से सपनो में
जीने की खुशियाँ पाता है||

ये मन भागता सा
हाथों से फिसलता
दूर जा खड़ा होता है ||

रसोईघर का झगडा

रसोईघर का झगडा

सोते सोते रात में
आवाजे दी कुछ सुनाई||
कान लगाकर सुना तो
अजब ही दिया दिखाई||

रसोई घर में चल था था
बड़ा ही भारी मसअला||
कौन सही कौन गलत
नही हो रहा था फैसला||

बर्तनों में छिड़ी हुई थी
आपस में इक जंग||
नये नवेले बर्तन आगे
पुराने पीछे तंग||

मिक्सी ने शान से था
अपना आसन जमाया ||
सिलबट्टा था रो रहा
बाहर का रस्ता जो पाया ||

पीतल, कांसे के बर्तन का
पितरों जैसा हाल||
पूजा के दिन दिख जाते
फिर दिखे ना पुरे साल||

दुःखभरे दिन साथ निभाया
LPG का चूल्हा||
स्टायल से आया कुकिंग रेंज
घर चूल्हा को भुला||

छोटा सा था फ्रिज हमारा
सब मिल जुलकर रहते थे||
जबसे आया डबल डोर
अलग हो गये सब साथ छोड़||

दिल घबराया देख देख कर
रसोईघर का झगडा||
भाग उठी में उलटे पाँव
बिस्तर का रस्ता पकड़ा||



Wednesday, September 17, 2014

हाँ में किन्नर हूँ ||

हाँ में किन्नर हूँ ||

हँसते हो तुम सब मुझको देख
नाम रखते हो मेरे अनेक||
सुन्दर सुन्दर उसकी रचना
मेरी ना किसी ने की कल्पना||

ईश्वर ने किया एक नया प्रयोग
स्त्री पुरुष का किया दुरूपयोग||
जाने क्या उसके जी में आया
मुझ जैसा एक पात्र बनाया||

तुम क्या जानो मेरी व्यथा
कैसे में ये जीवन जीता||
घूंट जहर का हर पल पीता
क्या जानो मुझपे क्या बीता ||

नारी मन श्रृंगार जो करता
पुरुष रूप उपहास बनाता
तन दे दिया पुरुष का
और मन रख डाला नारी का||

गलती उसने कर डाली
तो में क्यों होता शर्मिंदा
भोग रहा हूँ में ये जीवन
रह सकता हूँ में जिन्दा||

तुमको तो दीखता है तन
मुझको तो जीना है मन||
हँस देते सब देख मुझे
हाय मेरी ना कभी लगे तुझे||




Thursday, September 11, 2014

पितृ पक्ष को समर्पित

फिर से आई है बारी
धरती पर वापस जाने की||

पुत्र कर रहे है तैयारी
पितरों संग त्यौहार मनाने की||

अफरा तफरी मची हुई है
जाना भी तो जरुरी है||

पितृ पक्ष में मिलन है होता
फिर तो लम्बी दुरी है ||

कुछ आ जाते ख़ुशी ख़ुशी
कुछ अनमने से आये है||

सुख ही सुख तो ना था जीवन
दुखों के घाव भी खाए है ||

जीते जी तो कुछ ना पाया
मर गये तब याद है आया||

खीर पूरी का भोग लगाया
नाम हमारे ब्राह्मण ने खाया||

जीते जी आशीष दिया है
मर कर भी आशीष है देते

हमने तो झुलसाया जीवन
तुम्हे कभी ना आंच लगे ||





Thursday, August 28, 2014

आजकल के बच्चे

आजकल के बच्चे

थोड़े नादान थोड़े अनजान, थोड़े सँभलते थोड़े फिसलते
समय की भट्टी में जलते, संस्कारों से कुंदन से दमकते||

अच्छी पढाई का बोझ लिए घर से निकलते
दुनियादारी की आंधी में खुद से संभलते||

घर का सुख नही माँ का लाड नही
बचपन की मस्ती नही, जीवन का आनंद नही||

यूँ ही तो नही तकदीर अपनी बदलते
समय के साथ समय से आगे है चलते ||

कुछ पाने के लिए कितना कुछ खो देते है
माँ की गोद मिले तो बिना बात रो देते है||

कैसा जमाना आया है अंधी दौड़ जारी है
हर कोई एक दुसरे पर बन रहा भारी है||





Friday, August 22, 2014

जब भी हमने काला चश्मा लगाया

जब भी हमने काला चश्मा लगाया
सीने को ४ इंच चौड़ा ही पाया ||

ना जाने क्या कनेक्शन था दोनों में
चश्मा लगाते ही सीना फूल जाता था||

सीना फूलते ही शरीर हरकत में आ जाता
५ फिट के हम खुद को ६ फिट के समझने लगते ||

क्रांति ही आ जाती शरीर में
एक तो वैसे ही हमारी मोटी नाक ||

फूलकर और मोटी हो जाती
तो हमें हो जाती और परेशानी ||

पर काला चश्मा लगाना भी जरुरी था
बिन काले चश्मे के पर्सनेलिटी अधूरी ही लगती हमें ||

फिर वो हमारे हेयर बैंड का भी काम कर देता है
तो हम और भी निखर निखर जाते है ||

दिन हो या रात, धुप हो या बरसात अब अधूरे तो नही रह सकते ना
अब काला चश्मा लगाते  है तो कुछ गलत करते है क्या ?