Tuesday, December 2, 2014

तोड़ के बंधन बह गया ये मन

तोड़ के बंधन बह गया ये मन
ज्यों बह जाता बाढ़ का पानी
हाथ पसारे रह गयी अंखियाँ
दिल ने हठ करने की ठानी
 
तुम आये तो हो गये जिन्दा
दिल के सब अहसास कुंवारे
दिल ने किया है धोखा ऐसा
जा बैठा वो पास तुम्हारे

मीठा मीठा स्पंदन देता
तेरी नज़र का हर एक झोंका
बहुत लगाई बाड़े हमने
हर रस्ता आने का रोका

दिल की धड़कन शोर मचाये
अरमानों के फैले साए
दिन में भी है ख्व़ाब तुम्हारे
नींद तुम्हें संग लेकर आये

चीर गया नज़रों का मिलना
रोक सके ना दिल का खिलना
छोड़ दिया है खुद को तुमपर
क्या तो सम्हलना और क्या फिसलना

सरिता पन्थी







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