स्त्री को चाह होने लगी स्त्री की 
पुरुष कर रहा पुरुष से प्यार 
कैसे तो ये संभव है 
और कैसे हो जाता इकरार||
स्वभाविक सी अभिव्यक्ति है 
या सामाजिक वर्जनाओं को तिरस्कृति है
ईश्वर का तो नही रहा होगा ऐसा कोई अभिप्राय 
प्यार के नये नये रूप देते दिल हिलाए||
स्त्री और पुरुष का अनमोल अनूठा जोड़
सृष्टि टिकी है इस रिश्ते पर कैसे कोई सकता तोड़ 
वासनाओं के दिख रहे नित नए ही रूप 
इश्क हो रहा शर्मिंदा प्यार दिख रहा कुरूप||
सृष्टि की रचना, करते नर और नारी 
स्नेह उनका पड जाता जग पर हरदम भारी 
अस्वाभाविक रिश्ते कुछ पल के मेहमान 
जैसे आ जाता दूध में उफान||
युगों युगों तक अमर रहता नर नारी का प्यार 
देता सन्देश जीवन का करता सृष्टि का सत्कार ||
सरिता पन्थी 
 
 
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